India में 5th September को शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में क्यों मनाते हैं? सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन पर क्यों नहीं?

सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव (ज्योतिबा) फुले ने मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह न केवल ऐतिहासिक था बल्कि समाज के क्षेत्र में भी शिक्षा की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। 19वीं सदी में भारत में शिक्षा किसी समाज के विशेष जातीय लोगों को दी जाती थी, तभी उन्होंने उन समाजों, खासकर महिलाओं, के लिए असमानताओं जैसे दलितों के लिए शिक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक कार्य किया था।

19वीं सदी का भारतीय समाज जातिवाद, लिंग भेद, छुआछुत और अंधविश्वास से ग्रस्त था। इन हालत को देखकर सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाकर क्रांतिकारी कार्य किया।

सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव (ज्योतिबा) फुले ने दोनों मिलकर सन् 1848 में पुणे के भिड़े वाड़ामें भारत का पहला महिला विद्यालय खोला था। इसमें सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका बनी थी। समाज के लोग उसका विरोध करते थे, गालियाँ देते थे और पत्थरबाजी करते थे, परन्तु वह उनके विरोध के बावजूद डटी रही।

उन्होंने शिक्षा को उच्च जाति तक ही सीमित नहीं रखा। आगे उन्होंने दलितों, पिछड़ों, विधवाओं और गरीब लोगों के लिए भी विद्यालय खोला था। उनका मानना था कि “एक पुरुष को शिक्षित करो तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है, लेकिन एक महिला को शिक्षित करो तो पूरा परिवार शिक्षित होगा।”

सावित्रीबाई फुले ने कविताओं और निबंधों से महिलाओं की दिशा उजागर की थी। उनकी प्रमुख रचनाएँ “काव्यफुले” और “बावन्नकशी सुबोध रत्नमाला” थी।

उन्होंने स्कूलों को खुलने के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं ली बल्कि स्वतंत्र संस्थाएं चलाई थीं। उन्होंने विधवा को पुनः विवाह करने की ओर बढ़ावा दिया और बालविवाह का विरोध किया। सावित्रीबाई ने बालहत्या पतिबंधक गृह को शुरू किया। जहाँ अविवाहित महिलाएं सुरक्षित रहती हैं. सुरक्षित तरह उन्होंने स्कूलों खुलने के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं ली बल्कि स्वतंत्र संस्थाएं चलाई थीं।

सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव (ज्योतिबा) फुले का योगदान शिक्षा तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने ऐसे समाज की परिकल्पना और शिक्षा की स्थापना की जहाँ ज्ञान, समानता और स्वतंत्रता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो पाया है। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम नहीं है; यह एक ऐसा औजार है जो समाज में परिवर्तन ला सकती है। शिक्षा को जन-जन तक पहुँचाया जा सके जिससे समाज में शोषण, अंधविश्वास और भेदभाव जड़ से खत्म हो सके। उनके संघर्ष को आज भी याद किया जाता है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक राष्ट्रपति थे जिनकी बात को तुरंत राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली, परन्तु सावित्रीबाई फुले का ऐतिहासिक रूप बड़ा था, फिर भी उन्हें लम्बे समय तक शिक्षा प्रणाली और सरकारों ने उतनी मान्यता नहीं दी। उन्हें उस तरह का सम्मान और मंच नहीं मिला जो मिलना था।

सावित्रीबाई फुले का योगदान आज भी महिला शिक्षा, सामाजिक न्याय और दलितों के अधिकारों के संदर्भ में सराहा जाता है। कई संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता 3 जनवरी को महिला शिक्षा दिवस और बालिका शिक्षा दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है क्योंकि वह प्रभावशाली नेता थे। सावित्रीबाई फुले का इनसे कहीं अधिक बुनियादी और क्रांतिकारी था, लेकिन उन्हें उस समय राजनीतिक और सामाजिक समर्थन नहीं मिला। उम्मीद है अब उन्हें भी राष्ट्रीय स्तर पर उचित सम्मान मिले।

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