रविवार 10 अगस्त की रात से सोमवार 11 अगस्त सुबह के बीच गोड्डा ज़िले के बोआरीजोर थाना क्षेत्र में स्थित कमारदोरी (जिरली–धामनी) पहाड़ी पर पुलिस और सूर्या हांसदा के बीच एनकाउंटर हुआ।(सूर्यनारायण हांसदा) सूर्या हांसदा, और उम्र लगभग 44 वर्ष थी। वह डकैता गांव का निवासी था।

वह बोरियो विधानसभा क्षेत्र में चार बार चुनाव लड़ चुका था। 2009 और 2014 में jvm से , 2019 में बीजेपी और 2014 में JLKM, लेकिन सभी में सफल नहीं हुआ।
पुलिस के अनुसार, गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने हथियारों की जगह बताने के बाद उन्हें पहाड़ी (कमारदोरी) ले जाया। रास्ते में उसके समर्थकों ने पुलिस पर हमला किया। उस समय, हांसदा ने पुलिस से INSAS राइफल छीनकर भागने की कोशिश की। वह लगभग आधे घंटे चली लड़ाई में मारा गया। SP मुकेश कुमार ने बताया कि एनकाउंटर खुद-रक्षा में हुआ था और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के निर्देशों का पालन किया गया था।
विपक्ष और परिवार
मां और पत्नी ने शरीर स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि उनका दावा था कि पुलिस ने उसे योजना बनाकर उसे मार डाला, न कि आत्मरक्षा में गोली चलाई। सूर्या हांसदा अस्वस्थ था (टाइफाइड) और भागने के योग्य नहीं था। उन्होंने इसे फर्जी एनकाउंटर बताया है। 500 बच्चों को मुक्त में शिक्षा देता था। उन बच्चों का भविष्य क्या होगा? वह चाँद भैरो राजा राज स्कूल चलाता था।
गोड्डा ज़िले से आदिवासी नेता और चार बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके सूर्या हांसदा की मौत ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। विरोधी पक्ष ने इस घटना को सिर्फ कानूनी कार्रवाई नहीं मानते हुए, योजना बनाकर हत्या करार देते हुए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
बीजेपी के कई नेता ने क्या कहा?
झारखंड विधानसभा में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस एनकाउंटर को “एनकाउंटर नहीं बल्कि हत्या” कहा। उन्हें सीधे आरोप लगाया कि यह हत्या आदिवासियों की आवाज़ से डरते हुए अधिकारियों ने की, जो वर्दी में छिपे “कायर और बुज़दिल” थे। मरांडी ने कहा कि राज्य में अपराधियों को संरक्षण देने वाले पुलिसकर्मी अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिससे राजनीतिक दलों के नेता और आम लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमेंट सोरेन से सीबीआई या हाईकोर्ट के सिटिंग जज की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। सोशल मीडिया पर एक लेख में उन्होंने कहा कि अगर सरकार सीबीआई जांच से डरती है, तो वह हाईकोर्ट के जज से भी जांच करवा सकती है ताकि सच्चाई सामने आ सके।
पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भी इस एनकाउंटर को आदिवासी लोगों की आवाज को दबाने की कोशिश बताया। उन्हें X (पूर्व में Twitter) पर कई प्रश्न पूछे गए। बीमार व्यक्ति ने पुलिस पर गोली चलाई कैसे? वह देवघर से गोड्डा तक बिना किसी प्रतिरोध के कैसे चला गया? आधी रात को जंगल में ले जाने की बजाय सुबह इंतजार करने का क्या कारण था? सीने के बजाय पैर में गोली क्यों लगी?
उन्हें आदिवासी हित की आवाज़ को दबाने की तर्कहीन प्रक्रिया पर चिंता जताई और कहा कि निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है क्योंकि घटना सबके सामने होनी चाहिए।
इस घटना को पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी सार्वजनिक तौर पर संदेहपूर्ण बताया था। उनका कहना है कि यह स्पष्ट था कि वे चार बार चुनाव लड़ने के बाद मुख्यधारा से जुड़ना चाहते थे, लेकिन पुलिस की कार्रवाई संदेह पैदा करती है। उन्होंने पूछा कि किस तरह पुलिस ने एक आदिवासी नेता की आखिरी सांस छीन ली, जिसने लोकतंत्र में भागीदारी की कोशिश की थी।
JLKM नेता जयराम महतो क्या कहता है?
JLKM नेता टाइगर जयराम कहता है कि अगर आदिवासी राष्ट्रपति में ही आदिवासियों के पूर्व नेता सूर्या हांसदा का इनकांउटर होता है, तो डर का विषय है। वह उनके पार्टी से चुनाव लड़े थे। उसने CBI से जाँच की माँग की है। ताकि दूध का दूध और पानी का पानी का पता चले।
विपक्ष ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह एक एनकाउंट्रर नहीं, बल्कि एक नीतिगत हत्या की घटना है। भाजपा और अन्य विपक्षी नेताओं ने पुलिस के दावे पर संदेह जताया है और कहा है कि केवल एक स्वतंत्र, न्यायिक या सीबीआई जांच ही इस मामले को सही ढंग से उजागर कर सकती है।






