डॉक्टर्स का भविष्य कब तक दांव पर रहेगा? डॉक्टर्स ने पूरे 18 महीने तक कार्य का बहिष्कार क्यों किया?

दक्षिण कोरिया के इंटर्न और रेसिडेंट डॉक्टर्स ने पूरे 18 महीने तक कार्य का बहिष्कार किया। उनकी सरकार ने मेडिकल सीट्स को तीन हजार से पाँच हजार कर दिया था।  इन युवा डॉक्टर्स को डर था कि कहीं उनका भविष्य खतरे में नहीं पड़ जाए।

वहीं भारत में पिछले 10 वर्षों में मेडिकल सीट्स दोगुनी हो गईं, लेकिन किसी ने सवाल नहीं उठाया। सरकार ने स्वयं संसद में कहा कि भारत का डॉक्टर-रोगी अनुपात अब WHO से बेहतर है। फिर भी कोई यह पूछने का साहस नहीं करता कि जब अनुपात बेहतर है, तो नए मेडिकल कॉलेज इतनी तेज़ी से क्यों खोले जा रहे हैं?

एक जिला अस्पताल से क्रमोन्नत मेडिकल कॉलेज में ENT डिप्लोमा की 10 सीट्स हैं। तीन बैच मिलकर 30 छात्र, और जब कोई सर्जरी होती है तो ऑपरेशन थियेटर का नजारा डिसेक्शन हॉल जैसा होता है।

राजस्थान में एनेस्थीसिया की 400+ सीट्स हो चुकी हैं। यानी हर साल हर जिले में लगभग 8 नए एनेस्थेटिस्ट। अगले 10 वर्षों में केवल एक लोकसभा क्षेत्र में 160 से भी अधिक निश्चेतना रोग विशेषज्ञ होंगे। कितना काम मिल पाएगा उन्हें ? यही हाल अन्य स्पेशियलिटीज़ का भी है।

कुल मेडिकल और पीजी सीट्स की लगभग 50% सीट्स प्राइवेट हैं, जिनकी फीस करोड़ों में है। इन सीट्स से सालाना अरबों रुपए का टर्नओवर होता है। इनमें से अधिकतर डॉक्टर्स को डिग्री लेने के बाद न सरकारी नौकरी मिलेगी, न निजी क्षेत्र में सम्मानजनक वेतन। इनमेक्स अधिकांश की “एकमात्र उपलब्धि” अपनी फीस से देश की इकॉनमी को मजबूत करना होगा।

यह सब हमारी आंखों के सामने हो रहा है। और हम? हम उस मूर्ख कबूतर की तरह हैं जो बिल्ली को देखकर भी आंखें बंद कर लेता है। अब भी वक्त है। अगर हमने आंखें न खोलीं और आवाज़ न उठाई, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ़ नहीं करेंगी।

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