उनका कहना है कि हर आदमी का समाज ही उसकी पहचान होती है और समाज ही उसका अस्तित्व है। इसलिए बाक़ी चीज़ें बाद में आती हैं। सबसे पहले आता है समाज और दूसरे में आती है राजनीति।
आगे बसंती हेंम्बम ने कहा कि अपने समाज को आगे रखें और मैं अपने समाज को, उसके बाद मैं राजनीति। हमारे जो केंद्रीय अध्यक्ष हैं, वह खुद पहले अपने समाज को प्रेफरेंस दे रहे हैं कि समाज सबसे पहले आता है और उसके बाद आती है राजनीति। तो इसी तरह हर आदमी के लिए यह सच है कि पहले समाज आता है और उसके बाद आती है राजनीति। अगर समाज है तो हम हैं और अगर समाज नहीं है तो हम भी नहीं।
राजनीति अलग चीज़ होती है। समाज अलग चीज़ है। किसी का भी संवैधानिक मांग जायज होता है, लेकिन असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक सही नहीं होता है, और जहां तक आप बोल रहे हैं कि उनको उनका कहना है कि पहले वो आदिवासी में थे, अब उनको हटा दिया गया, तो बसंती इस बात को सही नहीं मानती है। 1913 में गलती से स्लाइस डाल के उनका ट्राइब लिखा गया लेकिन 1914 में ब्रिटिश कॉलोनी द्वारा फिर से नोटिफिकेशन निकाला गया।. उन लोगों को हटाया गया लेकिन वो जिस तरह से लड़ रहे हैं। उनका बेसिक जो है, वो गलत है।
सबसे पहली बात है संवैधानिक तारीख से वो होता कि जो उनके एमपी, एमएलए, संसद और सदन हैं, उन्हें बात रखनी चाहिए थी क्योंकि संसद में ही और सुप्रीम कोर्ट से ये चीज होगी, तो रेल डे असंवैधानिक है। इससे लोगों को परेशानी हो रही है, आर्थिक क्षति हो रही है देश को, तो उससे अच्छा उनके जो प्रतिनिधि हैं, वो बोलते हैं संसद में तो बेटर।
बहुत सारे जो कि कुर्मी समाज को बरगला भी रहे हैं। बसंती का कहना है कि मैं ऐतिहासिक तथ्य पे जाना चाहूंगी, और ऐतिहासिक तथ्य में उनको ट्राइब नहीं माना गया। उनको कास्ट माना गया है। इसमें लड़ने झगड़ने की कोई बात नहीं है। बात इतनी है कि आप ऐतिहासिक तथ्य पे जाओ ना। और अगर आप देखेंगे तो पहले हमारे जो कुर्मी समुदाय से विनोद बिहारी महतो जी थे, उन्होंने भी शिवाजी समाज की स्थापना की थी। खुद को वो लोग शिवाजी समाज के वंशज मानते हैं।
वे हमेशा से आदिवासी समाज के आसपास ही रहते हैं। हम लोग एक दूसरे के साथ रहते हैं, तो कहीं ना कहीं एक दूसरे के रहन-सहन से हम प्रभावित होते हैं।






